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अनु के हस्ताक्षर

मानसिक स्वास्थ्य

नकारात्मकता में सकारात्मकता की जो करोगे तलाश
मानसिक स्वास्थ्य का रहेगा सदा आपमें निवास !!
मानसिक स्वास्थ्य अर्थात मन को स्वस्थ रखना। मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति और आसपास की दुनिया के बीच संतुलन की स्थिति है। स्वयं और अन्य लोगों के बीच सामंजस्य की स्थिति है। स्वयं तथा परिस्थितियों और वास्तविकताओं के बीच सह-अस्तित्व की स्थिति है।परंतु कई बार यह संतुलन डगमगा जाता है। परिस्थितियों के थपेड़ों में मानव के व्यवहार में परिवर्तन आना स्वाभाविक है और कुछ सीमा तक स्वीकार्य भी परंतु यदि यह परिवर्तन दीर्घकालीन हो जाए तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए चेतावनी है । कोविड-19 महामारी ने प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर असंख्य लोगों के जीवन को प्रभावित किया है । इस महामारी ने कितने ही अपनों को छीनकर घर -आँगन को सूना कर दिया तथा हज़ारों लोग इस महामारी के चलते आई भयंकर मुसीबतों के शिकार हुए। पर सबसे अधिक कुप्रभाव बच्चों पर पड़ा क्योंकि इसके कारण उन के बचपन की हँसी कहीं खो गई । स्कूलों में अपने हम उम्र साथियों के साथ मिलजुलकर पढ़ना-लिखना , खेलना -कूदना, मौज़ – मस्ती करना , सब कुछ कोरोना की गिरफ़्त में कैद होकर रह गया । घर में ऑनलाइन पढ़ाई और बाकी समय कंप्यूटर, मोबाइल या गेमिंग डिवाइसेज़ के सहारे वक्त काटना, ज्यादातर बच्चों की यही दिनचर्या हो गई और इकलौते बच्चों के लिए तो परेशानी और भी ज्यादा क्योंकि अकेलेपन ने उनके तन और मन दोनों को ग्रसित कर दिया । कोरोना महामारी के काल ने किसी वयस्क की भाँति बच्चों को भी तनाव, घबराहट और अवसाद का शिकार बना दिया। बच्चे अगर बाहर नहीं निकल पाते, अपने दोस्तों से नहीं मिलते, स्कूल नहीं जा पाते, तो तनाव बढ़ता है। माता-पिता को जब वे तनावग्रस्त देखते हैं, तो इसका दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ना स्वाभाविक ही है। आँकड़ों के अनुसार तीन वर्ष से कम आयु के बच्चों में गुस्सा और हाइपर-एक्टिवनेस , बोलने में देरी या बातचीच में कमी , माता-पिता के आइसोलेशन या क्वारंटीन में होने पर घबराहट- अवसाद – भावात्मक अस्थिरता आदि लक्षण स्पष्ट देखे गए हैं , वहीं छात्रों और युवा पीढ़ी को असामान्य व्यवहार , चिड़चिड़ापन, नींद का अभाव, हिंसक प्रवृति आदि ने घेर लिया । जहाँ स्क्रीन समय की अधिकता आँखों को खोखला करने लगी वहीं चारदीवारी का बंधन मन को । पर हर रात की सुबह होती है । कोई भी परिस्थिति हमारी प्रबल इच्छा शक्ति से बड़ी नहीं होती । यदि अपने चेहरे का रुख सकारात्मकता के सूरज की ओर मोड़ेंगे तो मुसीबतों की परछाइयाँ दिखाई ही नहीं देंगी । कोरोना ने ऐसा मानसिक दबाव बना दिया , मन को ऐसा विकृत कर दिया कि लगने लगा जैसे सारी दुनिया ही खत्म हो गई हो । जब एक कैटरपिलर ने सोचा कि दुनिया खत्म हो रही है तो वह एक रंग – बिरंगी तितली में बदल गया। स्मरण रखिए कि समुद्र
के एक छोर पर खड़े होकर सागर हमें विलीन होता ही दिखता है परंतु वास्तव में वह अथाह है । उसी प्रकार हमारे चित्त से गहरा और रहस्मयी कुछ भी नहीं । उसमें मानसिक शक्तियों का अथाह भंडार है , बस हमें उस शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है । मानसिक स्वास्थ्य के लिए मात्र खुली सकारात्मक रोशनी, खुली स्पष्टवादिता और खुली परिचर्चा की ज़रूरत है । बड़ों को चाहिए कि बच्चों के साथ समय व्यतीत करके उन्हें सुरक्षित होने का अहसास कराएँ, सृजनात्मक कार्यों की ओर उनका ध्यान आकर्षित करें, उन्हें मिथक जानकारियों से दूर रखें और यदि किसी अपने में कुछ असामान्य व्यवहार दृष्टिगोचर हो तो मानसिक सहायक की सहायता लेने में तनिक न हिचकिचाएँ और न ही विलंब करें । बच्चे भी अपने अभिभावकों के मनोभावों और उन पर आई घर – गृहस्थी की ज़िम्मेदारियों को समझने का प्रयास करें तथा अपने दायित्वों का निर्वाहन विचारपूर्वक करें । कुछ उनके मन की सुनें और अपने मन- मस्तिष्क में चलते सवालों को अपने अंदर दबाकर न रखें बल्कि साँझा करें क्योंकि वैचारिक आदान- प्रदान मन को शांत करता है और दिमाग के इंजन को विश्राम देता है । विपरीत परिस्थितियों में कुछ हताश होकर टूट जाते हैं पर वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो रिकॉर्ड तोड़ते हैं । अपनों का साथ, शारीरिक व्यायाम , खुली ताज़ी हवा में टहलने का आनंद , जंकफूड रहित पौष्टिक आहार , धैर्य और आत्मविश्वास ऐसे शस्त्र हैं जिससे मानसिक विकार को सुआकार दिया जा सकता है । शारीरिक हो या मानसिक स्वास्थ्य बाज़ारों में नहीं बिकता, यह हमारे अंदर ही निवास करता है। उसे प्राप्त करने के लिए खुद को ही खुद से जीतना पड़ता है । मानसिक स्वास्थ्य सदा से परम आवश्यक रहा है क्योंकि ‘मन स्वस्थ तो तन स्वस्थ !’
स्वास्थ्य को दें प्रथम स्थान, तभी होगा रोगों से निदान !!

अनु के हस्ताक्षर


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