संसार में आना और फिर बिना किसी उद्देश्य के संसार में जीना, इससे अधिक भयावह बात कुछ नहीं हो सकती। ये कुछ ऐसा है जो मनुष्य को मनुष्यता से दूर कर देता है। उचित-अनुचित की पहचान, अच्छाई-बुराई में अंतर तथा एक दूसरे के प्रति संवेदना का भाव यदि मनुष्य के अंदर न हो तो उसका मनुष्य होना व्यर्थ है। हमारा मानव होना तब सार्थक होता है जब हमारे अंदर मानवता होती है। जब एक शिशु का जन्म होता है तब कुछ मानवता उसे जन्म से पूर्व ही प्राप्त होती है जैसे यदि उसके सामने हँसा जाता है तो वह भी खुश होता है, यदि उसके सामने दु:खी हुआ जाता है तो उसके चेहरे पर भी दुःख के भाव देखने को मिलते हैं। किंतु जैसे-जैसे वो बड़ा होने लगता है उसकी शिक्षा, उसके घर-परिवार का माहौल तथा उसके आस-पास के वातावरण का उस पर प्रभाव पड़ने लगता है और उसके अंदर ये गुण कम अथवा ज़्यादा होने लगता है। ऐसे में उसे एक बेहतर इंसान बनने के लिए न सिर्फ़ अच्छी शिक्षा की आवश्यकता होती है बल्कि अच्छे गुण, अच्छे स्वभाव, दयाभाव तथा दूसरों के प्रति कल्याण की भावना सिखाने की भी आवश्यकता होती है जिससे वो शिक्षित होने के साथ-साथ एक अच्छा नागरिक बने और समाज कल्याण के लिए तथा उन्नति के लिए कार्य करे। उसे अपने जीवन मूल्यों का पूर्ण ज्ञान हो तथा उन जीवन मूल्यों का पालन करने के लिए उसमें दृढ़ इच्छाशक्ति तथा सामर्थ्य हो। जिससे वो भविष्य में स्वयं सफल होकर दूसरों को भी सफल होने में मदद करे तथा समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाए।इसके लिए हमें चाहिए कि देश का भविष्य होने वाली आगामी युवा पीढ़ी को बहुमुखी विकास देने के लिए सदैव तत्पर रहें। जिससे वो अपना लक्ष्य निर्धारित कर पूर्ण तन्मयता के साथ आगे बढ़ें।
“कर लक्ष्य निर्धारण फिर निरंतर प्रयास
मिले सफल को सफलता का आभास”
गुंजन के हस्ताक्षर